April 21, 2025 8:43 pm

ग्रामोदय विश्वविद्यालय में विश्व जल दिवस पर नदी सफाई और विमर्श का आयोजन

कुलगुरु प्रो भरत मिश्रा के नेतृत्व में विद्यार्थियों और शिक्षकों ने पवित्र  मंदाकिनी नदी की सफाई कर हिम खण्ड संरक्षण पर विमर्श किया


विश्व जल दिवस के अवसर पर आज ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग के प्राध्यापकों एवं  विद्यार्थियों ने संयुक्त रूप से नदी सफाई और विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया। कुलगुरु प्रो भरत मिश्र के नेतृत्व में चित्रकूट की जीवन रेखा पवित्र सलिला मां मंदाकिनी के स्फटिक शिला घाट पर सफाई का कार्यक्रम किया गया । प्रभु श्री राम के वनवास काल के दौरान  इन्द्र पुत्र जयंत द्वारा भगवती सीता के पैरों में चोंच मारा जाना एवं भगवान राम द्वारा उसे दंडित किया जाने का संदर्भ इस घाट की पौराणिकता का बताता है।
सफाई के दौरान इस घाट पर बड़ी मात्रा में नदी में प्लास्टिक की बोतलें, जूते,चप्पल, कपड़े, खाद्य  अपशिष्ट इत्यादि पड़े हुए मिले। पुनश्च में नदी में लगातार खाद्य गंदगी एवं गंदा पानी जाने के कारण उसके कारण वहां पर यूट्रॉफिकेशन की समस्या के कारण शैवाल भी बहुत उगे हुए थे। उक्त शैवालों को पानी के अंदर जाकर जड़ से उखाड़ करके साफ किया गया ,साथ ही और बहुत सी गंदगी जो नदी में उपस्थित थी उसको बाहर निकाला गया। ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलगुरु, प्राध्यापक एवं छात्रों की नदी के प्रति  संवेदनशीलता को देखते हुए इस कार्य में स्थानीय  लोगों द्वारा  नदी सफाई कार्यक्रम में सहभागिता और सहयोग किया गया। इस मौके पर ऊर्जा और पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष प्रो घनश्याम गुप्ता ने बताया कि ऐसे कार्यक्रम करने का प्रमुख उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना ही है।नदी की सफाई होना एक छोटा पहलू है। मुख्य पहलू यह है कि समाज में यह संदेश जाए की नदियां जिनको हमारे सनातन में मां का दर्जा दिया गया है उनको हम कैसे संरक्षित व संवर्धित करें।मंदाकिनी तो चित्रकूट की जीवन रेखा एवं अमूल्य धरोहर है। यदि मंदाकिनी नहीं होगी तो निश्चय ही चित्रकूट का अस्तित्व नहीं रह जाएगा। अस्तु हम सभी की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम मंदाकिनी का संरक्षण एवं संवर्धन करें और लोगों के सामने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करें  जिससे लगे कि नदी के प्रति हमारी संवेदनशीलता  प्रति अत्यधिक है। किसी भी अभियान में जन भागीदारी हो जाने से वह शत प्रतिशत सफल हो जाता है।जल प्रकृति के पांच महाभूतों में से एक महाभूत है और इनके बिना सृष्टि का अस्तित्व संभव नहीं है। श्री रामचरितमानस में इसका स्पष्ट उल्लेख है: क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।। जल की महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि प्रकृति ने पूरे भूमंडल में तीन चौथाई भाग पानी को एवं एक चौथाई भाग भूमि को दिया हुआ है। हमारे शरीर में भी यह लगभग 70% होता है। यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है एवं प्रकृति में यह तीनों रूपों  ठोस(बर्फ) द्रव(जल) एवं गैस(वाष्प) में पाया जाता है।  इस अवसर पर डॉ. साधना चौरसिया, डॉ. ललित कुमार सिंह अध्यक्ष हिंदी विभाग, अजय कुमार मिश्र, सौरभ त्रिपाठी, अंजलि सोनी, अंजली शुक्ला, करन,रामगोपाल इत्यादि ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।
विश्व जल दिवस पर आयोजित विमर्श  में हिम खण्ड  संरक्षण विषय पर हुए व्याख्यान पर प्रो  घनश्याम गुप्ता विभागाध्यक्ष ऊर्जा एवं पर्यावरण द्वारा विज्ञान  संकाय के सभा कक्ष में एक वार्ता प्रस्तुत की गई। प्रो गुप्ता ने बताया कि संसार में दो प्रकार की नदियां हैं पहली वर्षा पोषित एवं दूसरी हिम पोषित।इस प्रकार से हिम पोषित  नदियों के जनक हिम खण्ड माने जाते हैं। अस्तु इन नदियों को बचाने के लिए हिम खण्डों को बचाना होगा। आज की प्रमुख चुनौती यह है कि शीतकाल का दायरा कम होने से  हिमखंडों का क्षेत्रफल कम हो रहा है एवं वैश्विक उष्णता के चलते उनका पिघलाव भी बढ़ रहा है।ये दोनों ही भविष्य के लिए एक दुखद संकेत  हैं।  हिमखंडों का योगदान नदियों को पोषितकरने के साथ-साथ जैव विविधता को बरकरार रखना में भी है।सतत विकास के कई लक्ष्यों का संबंध हिमखंड संरक्षण से है अतः हमको  इनका संरक्षण आवश्यक रूप से करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Your Opinion

Will Donald Trump's re-election as US President be beneficial for India?
error: Content is protected !!