

चित्रकूट के पाठा क्षेत्र के सरहट गांव की रहने वाली बूटी देवी की कहानी संघर्ष, साहस और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। छोटी उम्र में ही उनकी जिंदगी में मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह स्कूल नहीं जा सकीं, लेकिन पढ़ाई का जुनून कम नहीं हुआ। सड़क किनारे पड़े कागजों और दीवारों पर लिखे शब्दों को पढ़कर उन्होंने खुद ही अक्षरज्ञान हासिल किया।
समाज की बंदिशों और गरीबी की बेड़ियों को तोड़ते हुए बूटी देवी ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी। शादी के बाद कुछ साल ही बीते थे कि उनके पति का निधन हो गया। यह उनके लिए सबसे बड़ा सदमा था, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय खुद को संभाला। परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उनके कंधों पर आ गया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
समाज सेवा की राह चुनी
अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने एक संस्था में काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को आत्मनिर्भर बनाया और समाज सेवा की ओर कदम बढ़ाए। बूटी देवी ने अपने प्रयासों से अपनी ननदों की शादी कराई और गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।
वह अब अपने गांव के गरीब और जरूरतमंद बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देती हैं। उनके लिए शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भर बनने का जरिया है। बूटी देवी चाहती हैं कि उनके गांव के बच्चे पढ़-लिखकर एक बेहतर भविष्य बना सकें।
महिला दिवस पर विशेष संदेश
महिला दिवस पर बातचीत में बूटी देवी ने अपने संघर्षों को साझा किया। उन्होंने कहा, “महिलाओं को कभी भी खुद को कमजोर नहीं समझना चाहिए। आत्मनिर्भरता ही सशक्तिकरण की सबसे बड़ी कुंजी है। अगर हम अपने अधिकारों के लिए खुद खड़े होंगे, तो कोई हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता