धर्म नगरी चित्रकूट की पावन धरती पर प्रभु श्री राम का अटूट और अनमोल नाता है. यह वही भूमि है जहाँ भगवान राम ने अपना वनवास काल बिताया था, चित्रकूट की हरी-भरी पहाड़ियों और शांत वातावरण में श्री राम ने न केवल अपने कष्टों का सामना किया, बल्कि यहां के आदिवासी समाज के साथ अपनी गहरी मित्रता और प्रेम की मिसाल भी कायम की है. इस अद्वितीय प्रेम कहानी में एक प्रमुख पात्र शबरी का है.जो एक आदिवासी महिला है. जिन्होंने भगवान राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे.
कौन थी शबरी और किस प्रकार से प्रभु श्री राम ने खाए उनके झूठे बेर जब प्रभु श्री राम अपने वनवास के दौरान चित्रकूट आए थे,तब वह जंगलों, पहाड़ियों और नदियों के बीच एक तपस्वी जीवन जी रहे थे, इसी दौरान उनकी मुलाकात पाठा क्षेत्र की एक आदिवासी महिला शबरी से हुई.शबरी एक साध्वी महिला थीं, जो अपनी जीवन में तपस्विता और भक्ति में लीन रहती थीं।
वह प्रभु श्री राम के प्रति काफी श्रद्धा रखती थीं.शबरी के पास अपने छोटे से झोपड़े में केवल बेर के कुछ पेड़ थे जिन्हें वह अपने मेहनत और तप से उगाती थीं। वह भगवान श्री राम से मिलकर उन्हें बेर खिलाने का सपना देखती थीं, लेकिन उनके मन में एक शंका भी थी क्या श्री राम मेरे बेर खाएंगे जो मैंने खुद चखे हैं?
तभी शबरी ने बिना कुछ सोचे अपनी श्रद्धा को सर्वोपरि माना और वह बेरों को एक-एक करके चखतीं गई.और देखती गई कि बेर मीठे हैं। जब वह संतुष्ट हो जातीं कि बेर मीठे हैं, तभी वह उन बेरों को भगवान श्री राम को अर्पित करने के लिए ले जातीं. प्रभु श्री राम का शबरी के प्रति प्रेम बेहद गहरा था. वह सब जानते थे कि शबरी ने उन बेरों को न केवल स्वादिष्ट बनाने के लिए चखा था, प्रभु राम ने शबरी के झूठे बेरों को बिना किसी घमंड के खाया और इसके साथ ही उन्होंने यह संदेश दिया कि भगवान के लिए आत्मिक प्रेम और श्रद्धा किसी रूप या स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण होती है.
वही मानिकपुर पाठा क्षेत्र के राजन कोल ने पेट्रोल न्यूज़ को जानकारी देते हुए बताया कि जब बदमाश कल के दौरान राम चित्रकूट आए. तब वह घूमते घूमते सबरी की झोपड़ी में पहुंचे.लेकिन शबरी के पास बेर के अलावा उनको खिलाने के लिए कुछ और नहीं था.
इस लिए वह रघु श्री राम की भक्ति में लीन होकर अपने मुंह से बेरो को चखकर प्रभु श्री राम के लिए अलग से निकालती थी. वह बेरो को इसलिए चखा करती थी ताकि प्रभु श्री राम के पास खट्टे बेर न चले जाएं. लेकिन प्रभु श्री राम के द्वारा शबरी के झूठे बेर खाने के बाद आदिवासियों का भगवान श्री राम के प्रति श्रद्धा और प्रेम में वृद्धि हुई.उन्होंने प्रभु श्री राम की पूजा और अर्चना पूरे दिल से करना शुरू किया।