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रीवा: मिनर्वा अस्पताल ने निभाया इंसानियत का फर्ज, जान बचाने की पूरी कोशिश के बावजूद परिजनों ने लगाए बेबुनियाद आरोप
रीवा के सिरमौर चौराहा ओवरब्रिज पर हुए सड़क हादसे में घायल गूढ़ निवासी ममता गुप्ता (लगभग 50 वर्ष) की जान बचाने के लिए मिनर्वा अस्पताल ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन इलाज के बाद परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर ही गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिए।
दुर्घटना के बाद इलाज में आई मुश्किलें
ममता गुप्ता को ओवरब्रिज पर अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, जिससे उनके सिर पर गंभीर चोटें आईं। दुर्घटना के बाद उन्हें पहले संजय गांधी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हालत नाजुक होने के कारण परिजनों ने उन्हें बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराने का निर्णय लिया।
सूत्रों के अनुसार, परिजनों ने पहले विहान अस्पताल में भर्ती करवाने की कोशिश की, लेकिन वहां से इलाज से इनकार कर दिया गया। इसके बाद मिनर्वा अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने बिना किसी एडवांस भुगतान के ही तुरंत इलाज शुरू कर दिया।
मिनर्वा अस्पताल ने दिखाया मानवता का परिचय
रीवा के एक प्रमुख नेता ने भी अस्पताल प्रबंधन से अपील की कि मरीज की जान बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की जाए। मिनर्वा अस्पताल के डॉक्टरों ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए बिना किसी पूर्व भुगतान के ममता गुप्ता का इलाज शुरू कर दिया।
हालत गंभीर होने के कारण मरीज की ब्रेन सर्जरी भी करनी पड़ी। मरीज की जान बचाने के लिए अस्पताल ने पूरे संसाधनों को झोंक दिया और बिना किसी आर्थिक लाभ के प्राथमिकता के आधार पर सर्जरी की गई।
इलाज के बाद परिजनों ने किया हंगामा
इलाज के बाद जब अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों से इलाज की कुछ फीस जमा करने को कहा, तो परिजनों ने उल्टा अस्पताल पर ही ब्लैकमेलिंग और अधिक शुल्क लेने के आरोप लगाने शुरू कर दिए।
परिजनों का दावा था कि अस्पताल ने उनसे ₹2 लाख वसूले हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर भुगतान किया गया था तो क्या परिजनों के पास कोई बिल या दस्तावेज मौजूद हैं?
“मृत घोषित” करने का झूठा दावा?
परिजनों का यह भी आरोप था कि संजय गांधी अस्पताल ने मरीज को मृत घोषित कर दिया था।
अगर ऐसा था, तो परिजन विभिन्न निजी अस्पतालों के चक्कर क्यों काट रहे थे? क्या संजय गांधी अस्पताल ने कोई आधिकारिक डेथ सर्टिफिकेट जारी किया था?
कौवा कान ले गया लेकिन कान तो देखना ही नहीं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन ममता गुप्ता को मृत बताया जा रहा था, वे अब भी जीवित हैं और उनका इलाज जारी है।
मिनर्वा अस्पताल के लिए बड़ा सवाल – क्या मानवता की कीमत चुकानी होगी?
मिनर्वा अस्पताल ने अपने डॉक्टर धर्म का पालन करते हुए बिना किसी एडवांस भुगतान के जीवन बचाने की कोशिश की, लेकिन अब उन्हीं पर आरोप लगाकर ब्लैकमेल किया जा रहा है।
यह घटना अस्पतालों और डॉक्टरों के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है—क्या अब जीवन बचाने के लिए भी अस्पतालों को खुद को बेगुनाह साबित करना होगा? क्या परिजनों को यह हक है कि वे इलाज के बाद मनमाने आरोप लगाकर अस्पताल प्रबंधन को बदनाम करें?
निष्कर्ष
- मिनर्वा अस्पताल ने बिना एडवांस लिए मरीज का इलाज किया।
- ब्रेन सर्जरी तक की गई, ताकि जान बचाई जा सके।
- इलाज के बाद परिजनों ने अस्पताल पर पैसे लेने का झूठा आरोप लगाया।
- परिजनों का दावा कि मरीज को संजय गांधी अस्पताल ने मृत घोषित कर दिया था, पूरी तरह गलत साबित हुआ।
अब जरूरत है कि समाज इस तरह की घटनाओं से सबक ले और उन डॉक्टरों और अस्पतालों को सराहे, जो बिना किसी स्वार्थ के मरीजों की जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं।