
Mauganj: विकास के नाम पर अतिक्रमण हटाने की प्रशासनिक कार्रवाई ने कई परिवारों को बेघर कर दिया। मऊगंज सिविल अस्पताल की भूमि पर बसे गरीबों के घरों को बुलडोजर ने एक झटके में ध्वस्त कर दिया। इस कार्रवाई में गरीबों के झोपड़े तो जमींदोज हो गए, लेकिन बड़े और पक्के मकानों पर कोई असर नहीं पड़ा, जिससे प्रशासन पर भेदभाव के आरोप लग रहे हैं।
पांच दशक का बसेरा, चंद मिनटों में उजड़ा आशियाना
करीब 50 वर्षों से इन परिवारों ने इस सरकारी जमीन पर अपने छोटे-छोटे घर बनाए थे, लेकिन आज 17 फरवरी को तहसीलदार सौरभ मरावी पुलिस बल के साथ पहुंचे और बिना देर किए अतिक्रमण पर कार्रवाई शुरू कर दी। कुछ लोग अपनी गृहस्थी ठेलियों पर लादकर नई जगह तलाशने निकल पड़े, तो कुछ अपने टूटे हुए आशियाने को देखकर फूट-फूटकर रोते नजर आए।
भेदभाव का आरोप: गरीबों पर चला बुलडोजर, बड़े मकान बचे!
स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल की इस जमीन पर कई आलीशान मकान बने हैं, लेकिन प्रशासन की नजर सिर्फ झोपड़ियों पर पड़ी। जिनके पास बड़े-बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक संबंध हैं, उनके घर जस के तस खड़े हैं, जबकि गरीब परिवारों को बेघर कर दिया गया।
हाईकोर्ट का हवाला देकर रोकी गई कार्रवाई
कुछ निवासियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की बात कहते हुए प्रशासन को रोकने की कोशिश की। नतीजा यह रहा कि कुछ घरों पर बुलडोजर नहीं चल पाया। तहसीलदार सौरभ मरावी ने कहा कि लोगों को पहले से ही अतिक्रमण हटाने के लिए नोटिस भेजे गए थे, लेकिन जब उन्होंने जगह नहीं छोड़ी, तो जबरन हटाने का फैसला लिया गया।
प्रधानमंत्री आवास वाले भी हुए बेघर!
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नगर परिषद द्वारा कुछ परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इसी जमीन पर मकान बनाने की अनुमति दी गई थी। लेकिन अब वही मकान तोड़ दिए गए, जिससे ये लोग बेघर हो गए हैं। विस्थापन के लिए जिन इलाकों की पेशकश की गई है, वहां न सड़क है, न बिजली, न पानी और न ही स्कूल।
अब आगे क्या?
प्रशासन की कार्रवाई पर प्रभावित परिवारों ने सवाल उठाए हैं और भेदभाव की जांच की मांग की है। क्या बड़े रसूखदारों के अतिक्रमण पर प्रशासन की नजर नहीं पड़ती?