Mauganj। अगर आपको जाति प्रमाण पत्र बनवाने की जरूरत है, तो पहले अपनी सहनशक्ति और समय का भंडार भर लें, क्योंकि मऊगंज के लोक सेवा केंद्र में काम करवाना किसी परीक्षा से कम नहीं है। हाल ही में एक विकलांग आवेदक ने 2 तारीख को जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दिया, लेकिन इसे ऑनलाइन करने में पूरे दो हफ्ते का समय लग गया। यही नहीं, 14 तारीख को आवेदन ऑनलाइन हुआ और 16 तारीख को रसीद थमाई गई।
आवेदन देने में ही शुरू हुआ ‘भटकाव अभियान’
विकलांग आवेदक ने बताया कि आवेदन जमा करने के लिए उसे कई हफ्तों तक भटकाया गया। कभी दस्तावेज अधूरे बताए गए, तो कभी प्रक्रिया को टालने के लिए बहाने बनाए गए। जब आवेदन किसी तरह जमा हो गया, तो उसे ऑनलाइन करने में ऐसी सुस्ती दिखाई गई जैसे यह काम देश की सबसे जटिल प्रक्रिया हो।
रसीद भी बनी ‘बड़ी उपलब्धि’
ऑनलाइन आवेदन के बाद भी रसीद पाने के लिए आवेदक को दो दिन का इंतजार करना पड़ा। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि आखिरकार 16 तारीख को रसीद थमा दी गई।
क्या यह सुस्ती आम है या विशेष?
प्रशासन की यह सुस्ती और लापरवाही केवल आम नागरिकों को ही नहीं, बल्कि विकलांगों जैसे जरूरतमंद लोगों को भी निशाना बना रही है। यह घटना दर्शाती है कि लोक सेवा केंद्र में “सेवा” शब्द का अर्थ केवल प्रतीकात्मक रह गया है।
प्रशासन के लिए ‘न्याय का चश्मा’ कब बनेगा?
यह मामला सवाल उठाता है कि क्या सरकारी प्रक्रिया को तेज करने के लिए किसी ‘विशेष यज्ञ’ की आवश्यकता है? विकलांग व्यक्ति के साथ हुई इस लापरवाही ने सरकार की सेवाओं की पारदर्शिता पर गहरी चोट की है।
आम जनता की राय
स्थानीय लोग कहते हैं कि “लोक सेवा केंद्र का काम कछुए की चाल से भी धीमा है।” यह हाल तब है जब सरकार डिजिटल इंडिया के सपने दिखा रही है।
लोक सेवा केंद्र मऊगंज में हुई यह घटना प्रशासनिक सुस्ती और जनता के अधिकारों की अनदेखी का प्रतीक है। क्या प्रशासन इसे जागने की घंटी समझेगा, या जनता को इसी तरह परेशान करता रहेगा?