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रीवा में जनसुनवाई के दौरान अनोखा विरोध, पूर्व सैनिक ने तहसील अधिकारियों पर रिश्वतखोरी का लगाया आरोप

रीवा। मध्य प्रदेश के रीवा जिले में मंगलवार को उस वक्त हड़कंप मच गया जब एक पूर्व सैनिक जनसुनवाई में नोट और गहनों से भरा सूटकेस लेकर कलेक्ट्रेट गेट पर बैठ गया। उसका कहना था कि यह सब रिश्वत के लिए है – अधिकारी पैसे और गहने ले लें लेकिन उसकी पुश्तैनी जमीन वापस कर दें। यह मामला रीवा के त्योंथर तहसील से जुड़ा है, जहां के अधिकारियों पर एक्स आर्मी मैन ने गंभीर रिश्वत के आरोप लगाए हैं।
सूटकेस में थे नोट और गहने, कहा – रिश्वत चाहिए तो ले लो!
पूर्व सैनिक योगेश तिवारी, जो मलपा गांव के निवासी हैं, सूटकेस खोलकर रीवा कलेक्ट्रेट गेट पर बैठ गए। उन्होंने कहा, “मैं सेना से रिटायर्ड हूं, मेरे पास जमीन के पूरे दस्तावेज हैं, इसके बावजूद अधिकारियों ने मेरी पुश्तैनी जमीन को सरकारी घोषित कर दिया। कई बार शिकायत की, लेकिन हर बार रिश्वत मांगी गई।”
दबंग को फायदा पहुंचाने का आरोप
तिवारी ने आरोप लगाया कि स्थानीय दबंग विद्याधर शुक्ला, जो पूर्व में धारा 376 और अन्य आपराधिक मामलों में जेल जा चुका है, को फायदा पहुंचाने के लिए ही तहसील के कर्मचारियों ने मिलीभगत से उनकी जमीन पर कब्जा करवा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि तहसील के अधिकारी इसी व्यक्ति के पक्ष में काम कर रहे हैं और कानूनी दस्तावेजों की अनदेखी कर रहे हैं।
‘मुझे नहीं चाहिए इज्जत, मुझे चाहिए न्याय’
जनसुनवाई के दौरान योगेश तिवारी का दर्द छलक पड़ा। उन्होंने कहा, “मैंने देश की सेवा की है, अब अपनी जमीन के लिए अधिकारियों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। अब मैं रिश्वत देने को भी तैयार हूं, लेकिन जमीन तो वापस दिला दो।”
कलेक्ट्रेट में मचा हड़कंप
पूर्व सैनिक का यह तरीका देखते ही जनसुनवाई स्थल पर अफरा-तफरी मच गई। लोग उसे घेरने लगे और वीडियो भी बनाने लगे। जब पता चला कि वह कलेक्टर से मिलने आया है, तो उसे कार्यालय की ओर ले जाया गया। लेकिन उस समय कलेक्टर प्रतिभा पाल मौजूद नहीं थीं।
कलेक्टर का बयान
रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल ने इस मामले में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “पूर्व सैनिक की शिकायत की गंभीरता से जांच की जाएगी। यदि कोई भी अधिकारी दोषी पाया गया, तो उस पर कार्रवाई तय है। शिकायतकर्ता को उचित प्रक्रिया के तहत आवेदन देने के लिए कहा गया है।”
यह मामला न केवल भ्रष्टाचार पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि एक आम नागरिक—even if he’s a decorated former soldier—कब, कैसे और क्यों सिस्टम के सामने खुद को लाचार महसूस करता है।