Mauganj। एक ओर सरकार, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर मऊगंज लोक सेवा केंद्र भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। यहां काम करवाने के लिए फॉर्म भरने से लेकर आवेदन जमा करने तक हर कदम पर ‘प्रशासनिक सेवा शुल्क’ के नाम पर वसूली हो रही है। हैरत की बात यह है कि तहसीलदार और एसडीएम, जो जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नियुक्त किए गए हैं, इस पूरे प्रकरण में ‘मूकदर्शक’ बने हुए हैं।
“सुविधा शुल्क” का खेल
मऊगंज लोक सेवा केंद्र पर एक साधारण जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी आवेदकों को घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है। अगर जल्दी काम करवाना है, तो “सुविधा शुल्क” की दरें अलग-अलग तय हैं। सूत्रों के अनुसार, ₹100 से ₹500 तक की रकम देकर काम तुरंत हो जाता है। और अगर आपने शुल्क नहीं दिया, तो आपका फॉर्म “तकनीकी कारणों” से वापस लौटाया जा सकता है।
“कौन किसे देख रहा है?”
लोक सेवा केंद्र के कर्मचारियों की कार्यशैली देख ऐसा लगता है जैसे वे किसी “स्वायत्त संस्थान” में काम कर रहे हों। आरोप है कि, तहसीलदार और एसडीएम को सब कुछ पता है, लेकिन वे इसे अनदेखा करने में ही भलाई समझते हैं। शायद उनकी नजर में जनता का पैसा उनके समय से ज्यादा सस्ता है।
जनता की बेबसी
लोगों ने बताया कि “यहां पर बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता। फॉर्म जमा करना हो या फिर प्रमाण पत्र बनवाना हो, हर जगह रिश्वत मांगी जाती है। अगर कोई शिकायत करने की कोशिश करता है, तो उसका काम और लटकाया जाता है।”
“न्याय की उम्मीद है, लेकिन कब?”
यह मामला प्रशासन के ऊपरी अधिकारियों तक कई माध्यमों के जरिये पहुंच चुका है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। तहसीलदार और एसडीएम की चुप्पी से ऐसा लगता है कि या तो वे मामले को समझने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर “व्यस्तता” का बहाना बना रहे हैं।
भ्रष्टाचार का महल कब गिरेगा?
मऊगंज लोक सेवा केंद्र की स्थिति यह सवाल खड़ा करती है कि क्या भ्रष्टाचार के इस महल को गिराने के लिए किसी बाहरी ताकत का इंतजार किया जा रहा है, या फिर जनता को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करनी होगी?
प्रशासन अगर जल्द ही इस पर कार्रवाई नहीं करता, तो यह भ्रष्टाचार का महल और मजबूत होता जाएगा।