
चित्रकूट (Chitrakoot)। बुंदेलखंड का चित्रकूट क्षेत्र दशकों तक डकैतों के आतंक का गढ़ रहा है।यहां के बीहड़ जंगलों में कई कुख्यात डकैतों ने अपने साम्राज्य स्थापित किए, जिनमें सबसे प्रमुख नाम शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ का है।
ददुआ: एक किसान से डकैत बनने की कहानी
ददुआ का जन्म चित्रकूट जिले के रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली गांव में हुआ था।पिता रामप्यारे पटेल के बड़े पुत्र शिवकुमार को परिवार में ‘ददुआ’ कहकर पुकारा जाता था।किशोरावस्था में ही ददुआ की संगत गांव के आवारा युवकों से होने लगी, जिससे उसकी आपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ीं।पिता की हत्या और भैंस चोरी के झूठे आरोपों ने उसे अपराध की दुनिया में धकेल दिया। 1975 में उसने बंदूक थाम ली और बीहड़ों में अपना गिरोह बना लिया।
दो दशकों तक आतंक का पर्याय
ददुआ ने 1970 से 2007 तक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंक मचाया।उसके खिलाफ 241 आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें हत्या, अपहरण और डकैती शामिल थे।वह अपने गिरोह के साथ बीहड़ों में पुलिस की पकड़ से दूर रहता था।22 जुलाई 2007 को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने मुठभेड़ में ददुआ और उसके पांच साथियों को मार गिराया, जिससे उसके आतंक का अंत हुआ।
राजनीति में दखल और प्रभाव
ददुआ ने अपने आतंक के बल पर क्षेत्र की राजनीति में भी हस्तक्षेप किया।उसके समर्थन से कई नेता चुनाव जीतते थे। उसने अपने भाई बालकुमार पटेल और पुत्र वीर सिंह को भी राजनीति में स्थापित किया।हालांकि, उसके मारे जाने के बाद उसके परिवार का राजनीतिक प्रभाव कम हो गया।
अन्य डकैत और उनका प्रभाव
ददुआ के अलावा, चित्रकूट के बीहड़ों में ठोकिया, बलखड़िया, घनश्याम केवट, बबुली कोल जैसे डकैतों ने भी आतंक फैलाया। इन डकैतों के खात्मे के बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हुई। हालांकि, हाल ही में 24 साल से फरार 50 हजार के इनामी डकैत छेदा सिंह उर्फ छिद्दा को चित्रकूट में साधु के वेश में गिरफ्तार किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि डकैतों का प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
पाठा की शेरनी: रामलली की बहादुरी
डकैतों के आतंक के बीच कुछ साहसी व्यक्तित्व भी उभरे, जिन्होंने उनका मुकाबला किया।66 वर्षीय रामलली, जिन्हें ‘पाठा की शेरनी’ कहा जाता है, ने ददुआ जैसे डकैतों को चुनौती दी और अपने गांव की रक्षा की।
चित्रकूट का यह डकैत इतिहास क्षेत्र की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित करता है।हालांकि अब स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन यह अतीत आज भी लोगों की स्मृतियों में जीवित है।