
MP :मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार का जाल लगातार फैलता जा रहा है, जहां सरकारी अधिकारी बिना किसी झिझक के रिश्वत की मांग कर रहे हैं और भ्रष्टाचार के मामलों में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। ताजा घटनाक्रम में दमोह और उमरिया जिलों से दो बड़ी खबरें सामने आई हैं, जहां लोकायुक्त ने भ्रष्टाचारियों को रंगे हाथों पकड़ा है।
दमोह का मामला:
दमोह जिले के जनपद पंचायत पटेरा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) भूरसिंह रावत को लोकायुक्त ने 20,000 रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया। यह रिश्वत निर्माण कार्यों के भुगतान एवं नए कार्य की स्वीकृति के एवज में ली जा रही थी। जानकारी के अनुसार, सीईओ ने ग्राम पंचायत कुटरी के सरपंच रामकुमार मिश्रा से पुराने निर्माण कार्यों के भुगतान और नए कार्यों के लिए 10% कमीशन की मांग की थी। सरपंच ने इस संदिग्ध मांग को लेकर लोकायुक्त से मदद की और जब सरपंच ने 20,000 रुपए की रकम देने की बात कही, तो लोकायुक्त की टीम ने सीईओ को रंगे हाथ पकड़ लिया।
इस कार्रवाई के दौरान कार्यवाहक उप पुलिस अधीक्षक मंजू सिंह के नेतृत्व में लोकायुक्त टीम के सदस्य शामिल थे। इसमें उप पुलिस अधीक्षक बी. एम. द्विवेदी, प्रधान आरक्षक महेश हजारी, आरक्षक सुरेंद्र सिंह, आशुतोष व्यास, राघवेंद्र सिंह गोल्डी, साक्षी और अन्य स्वतंत्र पक्ष मौजूद थे।
उमरिया का मामला:
इसी तरह, उमरिया जिले के मानपुर जनपद क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत माला के सचिव को भी लोकायुक्त ने 10,000 रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। पंचायत सचिव ने कुछ कार्यों के एवज में यह राशि मांगी थी। यह कार्रवाई भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार चल रही मुहिम का हिस्सा है, जिससे यह साफ है कि भ्रष्ट अधिकारियों पर अब कोई भी सख्त कार्रवाई होने वाली है।
बढ़ते भ्रष्टाचार पर सख्त कदम:
इन दोनों घटनाओं ने मध्यप्रदेश सरकार की स्थिति पर सवाल खड़ा किया है कि कैसे सरकारी अधिकारी खुले आम भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। लोकायुक्त की लगातार कार्रवाई से यह तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार अब भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए तैयार है, लेकिन सवाल यह है कि यह कार्रवाई कितनी प्रभावी होगी, और क्या इससे भ्रष्टाचार के राक्षस को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकेगा।